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    लोग अपने ढंग से ही समझेंगे, अपने न्यस्त स्वार्थ, अपने पक्षपात हैं- ओशो

     लोग अपने ढंग से ही समझेंगे, अपने न्यस्त स्वार्थ, अपने पक्षपात हैं- ओशो

    लोग अपने ढंग से ही समझेंगे, अपने न्यस्त स्वार्थ, अपने पक्षपात हैं- ओशो 

              मुक्केबाजी की प्रतियोगिता चल रही थी, बड़ा मुकाबला था; दोनों मुक्केबाज एक—दूसरे पर वार किए जा रहे थे, दर्शक स्तब्ध होकर यह जंगी मुकाबला देख रहे थे। सभी शांत थे। मगर मुल्ला नसरुद्दीन रह—रहकर बीच—बीच में आवाज लगा रहा था: मार एक मुक्का मुंह में! निकाल दे पूरे बत्तीस दांत बाहर! मार एक मुक्का मुंह में, झाड़ दे पूरी बत्तीसी! वह शांत ही न हो रहा था। आखिर एक व्यक्ति से न रहा गया, उसने कहा, भाई साहब, क्या आप भी कोई बड़े पहलवान हैं, जो इस प्रकार की जोश की बातें कर रहे हैं कि मार एक मुक्का मुंह में, कर दे पूरे बत्तीस दांत बाहर! मुल्ला बोला, जी नहीं, मैं कोई पहलवान—वहलवान नहीं, मैं तो दांतों का डाक्टर हूं और यह मेरे धंधे का सवाल है।
            लोग अपने ढंग से ही समझेंगे। अपने ही न्यस्त स्वार्थ हैं, अपने पक्षपात हैं। अपनी पुरानी धारणाएं हैं, अपने धंधे हैं। तो मुझे बोलनी तो वही भाषा पड़ेगी जो तुम समझते हो। लेकिन तब एक ही उपाय है कि तुम्हारी ही भाषा का उपयोग करूं और इस ढंग से करूं कि उसमें नए अर्थ लगा दूं, नई अर्थ की कलमें लगा दूं।मैं अर्थों को नए शब्द दे रहा हूं; शब्दों को नए अर्थ दे रहा हूं। तुम्हें मेरे साथ बहुत सोच—समझकर चलना होगा। तुम जल्दी निष्कर्ष न लेना। जल्दी निष्कर्ष में भूल—चूक होने का डर है।

    -ओशो

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