Tuesday, March 18.
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    जिसे तुम प्रार्थना समझते हो, वो अज्ञान है- ओशो


    जिसे तुम प्रार्थना समझते हो, वो अज्ञान है- ओशो

           मैं बहुत चमत्कृत हो जाता हूं यह देखकर कि लोग जाकर मंदिरों में झुक जाते है, जो आकाश को तारों से भरा देखकर नहीं झुकते। इनका मंदिर में झुकना झूठा होगा, निश्चित झूठा होगा। इसमें हार्दिकता नहीं हो सकती। आदमी की बनाई हुई मूर्ति में इन्हें क्या दिखाई पड़ सकता है ? आदतवश झुक जाते होंगे। बचपन से झुकाए गए होंगे इसलिए झुक जाते होंगे मां - बाप ने कहा होगा, झुको, इसलिए झुक जाते होंगे, भय के कारण झुक जाते होंगे -- कि कहीं नरक न हो, कहीं दंड न मिले। या लोभ के कारण झुक जाते होंगे कि झुकने से स्वर्ग मिलेगा, पुरस्कार मिलेंगे।
           लोग अपने भय, कमजोरी, नपुंसकता के कारण झुक जाते हैं और समझ लेते हैं कि हम खुदा के सामने झुक रहे हैं।
          अज्ञान है; तुमने प्रार्थना समझी है उसे ? वहां प्रार्थना बिल्कुल नहीं है, प्रेम बिल्कुल नहीं है। सरासर झूठ है। क्यों ?
          क्योंकि अगर आंखों में प्रेम होता तो इन पास खड़े वृक्षों के पास तुम्हारे झुकने का मन न होता ? कोयल कूकती और तुम न झुकते ? मोर नाचता और तुम न झुकते ? आकाश बादलों से भर जाता और तुम न झुकते ? चांदनी के फूल झर - झर झरते और तुम न झुकते ? कोई हंसता और तुम न झुकते ? मिट्टी में और हंसी ? किस चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हो ? उसके चरण - कमल प्रत्येक पल हैं, प्रत्येक स्थल पर हैं। एक - एक रेत के दाने पर उसके हस्ताक्षर हैं, लेकिन संवेदनशीलता चाहिए।

    -ओशो

    (नाम सुमिर मन बावरे, प्रवचन #9)

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