गांठ माया है- ओशो
गांठ माया है- ओशो
गांठ माया है
ग्रंथि’ को भी थोड़ा समझ लें,
क्योंकि यह बहुत कीमती शब्द है,
योग की दिशा में।
इतना कीमती शब्द है कि
जैनों ने तो महावीर जब
परम ज्ञान को उपलब्ध हुए
तो उन्हें नाम दिया’
निर्ग्रंथ’..
जो ग्रंथि से मुक्त हो गया;
जिसके पास अब कोई गांठ न रही।
क्योंकि यह बहुत कीमती शब्द है,
योग की दिशा में।
इतना कीमती शब्द है कि
जैनों ने तो महावीर जब
परम ज्ञान को उपलब्ध हुए
तो उन्हें नाम दिया’
निर्ग्रंथ’..
जो ग्रंथि से मुक्त हो गया;
जिसके पास अब कोई गांठ न रही।
इस गांठ को थोड़ा समझ लें।
गांठ बड़ी अदभुत चीज है।
देखी आपने बहुत होगी गांठ,
लेकिन खयाल नहीं किया होगा।
गांठ बड़ी अदभुत चीज है।
देखी आपने बहुत होगी गांठ,
लेकिन खयाल नहीं किया होगा।
एक रस्सी पर आप गांठ बांध देते हैं।
जब रस्सी पर आप गांठ बांधते हैं,
तो रस्सी में कुछ
परिवर्तन हो जाता है क्या?
उसके स्वभाव में,
उसके अस्तित्व में?
क्या उसका वजन बढ़ जाता है?
क्या उसका गुण बदल जाता है?
क्या हो जाता है रस्सी में?
रस्सी में कुछ भी नहीं होता...
और फिर भी बहत कुछ हो जाता है।
रस्सी में कुछ भी नहीं होता,
रस्सी में रत्ती भर
न तो गांठ से कुछ जुड़ता है,
न घटता है।
रस्सी जैसी थी अब भी वैसी ही है,
लेकिन फिर भी
वैसी ही नहीं है--गांठ- भरी है,
उलझ गई है।
स्वभाव जरा भी नहीं बदलता,
लेकिन उलझाव खड़ा हो सकता है
बिना स्वभाव के बदले;
स्वरूपत:
कुछ भी नहीं बदला है रस्सी में,
लेकिन सब बदल गया।
रस्सी किसी काम की न रही;
कुछ बांधना हो तो अब
नहीं बांध सकते,
क्योंकि रस्सी खुद ही बंधी है।
रस्सी का कोई उपयोग नहीं रहा अब,
लेकिन क्या उसके गुण में,
धर्म में कोई अंतर पड़ा है?
जरा भी अंतर नहीं पड़ा।
जब रस्सी पर आप गांठ बांधते हैं,
तो रस्सी में कुछ
परिवर्तन हो जाता है क्या?
उसके स्वभाव में,
उसके अस्तित्व में?
क्या उसका वजन बढ़ जाता है?
क्या उसका गुण बदल जाता है?
क्या हो जाता है रस्सी में?
रस्सी में कुछ भी नहीं होता...
और फिर भी बहत कुछ हो जाता है।
रस्सी में कुछ भी नहीं होता,
रस्सी में रत्ती भर
न तो गांठ से कुछ जुड़ता है,
न घटता है।
रस्सी जैसी थी अब भी वैसी ही है,
लेकिन फिर भी
वैसी ही नहीं है--गांठ- भरी है,
उलझ गई है।
स्वभाव जरा भी नहीं बदलता,
लेकिन उलझाव खड़ा हो सकता है
बिना स्वभाव के बदले;
स्वरूपत:
कुछ भी नहीं बदला है रस्सी में,
लेकिन सब बदल गया।
रस्सी किसी काम की न रही;
कुछ बांधना हो तो अब
नहीं बांध सकते,
क्योंकि रस्सी खुद ही बंधी है।
रस्सी का कोई उपयोग नहीं रहा अब,
लेकिन क्या उसके गुण में,
धर्म में कोई अंतर पड़ा है?
जरा भी अंतर नहीं पड़ा।
और यह गांठ क्या है?
क्या गांठ कोई वस्तु है?
इसे और थोड़ा ठीक से समझ लें।
क्या गांठ कोई वस्तु है?
अगर वस्तु होती गांठ,
तो रस्सी के बिना भी हो सकती थी।
अलग निकाल कर गांठ को रख देते,
रस्सी को अलग करके चल देते।
लेकिन रस्सी से गांठ
अलग की नहीं जा सकती।
इसका यह मतलब नहीं है कि
रस्सी को गांठ से
मुक्त नहीं किया जा सकता।
रस्सी को गांठ से मुक्त
किया जा सकता है,
लेकिन गांठ को रस्सी से अलग
नहीं किया जा सकता।
आप निकाल कर गांठ अलग
और रस्सी अलग,
ऐसा नहीं कर पाएंगे।
क्या गांठ कोई वस्तु है?
इसे और थोड़ा ठीक से समझ लें।
क्या गांठ कोई वस्तु है?
अगर वस्तु होती गांठ,
तो रस्सी के बिना भी हो सकती थी।
अलग निकाल कर गांठ को रख देते,
रस्सी को अलग करके चल देते।
लेकिन रस्सी से गांठ
अलग की नहीं जा सकती।
इसका यह मतलब नहीं है कि
रस्सी को गांठ से
मुक्त नहीं किया जा सकता।
रस्सी को गांठ से मुक्त
किया जा सकता है,
लेकिन गांठ को रस्सी से अलग
नहीं किया जा सकता।
आप निकाल कर गांठ अलग
और रस्सी अलग,
ऐसा नहीं कर पाएंगे।
तो गांठ कोई वस्तु नहीं है,
गांठ कोई पदार्थ नहीं है,
गांठ का कोई स्वतंत्र आस्तत्व नहीं है..
गांठ केवल आकृति है,
केवल रूप है--केवल रूप;
जस्ट ए फॉर्म विदाउट
एनी सल्लेंस इन इट
सिर्फ रूप...
भीतर कुछ भी नहीं है उसके।
भीतर तो रस्सी है,
गांठ के भीतर कुछ भी नहीं है।
गांठ खुद में कुछ भी नहीं है
कोरा रूप, कोरी आकृति है।
गांठ कोई पदार्थ नहीं है,
गांठ का कोई स्वतंत्र आस्तत्व नहीं है..
गांठ केवल आकृति है,
केवल रूप है--केवल रूप;
जस्ट ए फॉर्म विदाउट
एनी सल्लेंस इन इट
सिर्फ रूप...
भीतर कुछ भी नहीं है उसके।
भीतर तो रस्सी है,
गांठ के भीतर कुछ भी नहीं है।
गांठ खुद में कुछ भी नहीं है
कोरा रूप, कोरी आकृति है।
इसलिए इसे ऐसा समझें
कि गांठ का अस्तित्व वस्तुगत नहीं है,
केवल रूपगत है-- सिर्फ रूपगत।
इसलिए ऋषियों ने जगत को
’ नाम-रूप’ कहा है-
कहा है कि उसका अस्तित्व नहीं है,
वह सिर्फ एक गांठ है।
गांठ का नाम भी है, रूप भी है,
लेकिन अस्तित्व बिलकुल नहीं है।
गांठ है--रूप भी है, नाम भी है,
पहचानी भी जाती है,
और बाधा भी डालती है;
सुलझाई भी जा सकती है;
फिर भी नहीं है।
कि गांठ का अस्तित्व वस्तुगत नहीं है,
केवल रूपगत है-- सिर्फ रूपगत।
इसलिए ऋषियों ने जगत को
’ नाम-रूप’ कहा है-
कहा है कि उसका अस्तित्व नहीं है,
वह सिर्फ एक गांठ है।
गांठ का नाम भी है, रूप भी है,
लेकिन अस्तित्व बिलकुल नहीं है।
गांठ है--रूप भी है, नाम भी है,
पहचानी भी जाती है,
और बाधा भी डालती है;
सुलझाई भी जा सकती है;
फिर भी नहीं है।
गांठ माया है।
जगत को जो जानते हैं वे कहते हैं,
वह नाम-रूप गांठ है;
वह एक ग्रंथि है।
जगत को जो जानते हैं वे कहते हैं,
वह नाम-रूप गांठ है;
वह एक ग्रंथि है।
जैसा जगत के संबंध में सच है,
ऐसा ही मनुष्य के संबंध में सच है।
मनुष्य भी एक गांठ है
नाम-रूप।
अगर गांठ खोल दें,
तो पीछे जो बचेगा वह परमात्मा है।
ऐसा ही मनुष्य के संबंध में सच है।
मनुष्य भी एक गांठ है
नाम-रूप।
अगर गांठ खोल दें,
तो पीछे जो बचेगा वह परमात्मा है।
-ओशो
[ सर्वसार उपनिषद :10 ]
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