आपकी पूजा आपका मनोविश्लेषण है- ओशो
आपकी पूजा आपका मनोविश्लेषण है- ओशो
"आप जिसे पूजते है, उस पर विचार कर लेना। आपकी पूजा आपका मनोविश्लेषण है। किसे आप पूजते है? कौन है आपका आधृत? तो आपकी जीवन-दिशा कहां जा रही है, उसका पता चलता है। अगर आप सफल हो जायें तो आप वहीं हो जायेगे। अगर असफल हो जायें तो बात अलग है। लेकिन असफल भी आप उसी मार्ग पर होंगे।
अपने ह्रदय के कोने में इसकी जांच पड़ताल कर लेना जरूरी है कि कौन है मेरा पूज्य? और किस कारण से मैं पूजता हूं? जो पूज्य है, है; उसका सवाल नहीं है, इससे आप अपने को समझने में समर्थ हो पायेंगे। यह आत्मविश्लेषण होगा। और अगर आप अपने को बदलते है तो आपकी पूजा का भाव बदलता जायेगा। पूजा भी बदलती जायेगी।
पीछे लौटें, आज जैसा अभिनेता पूज्य है, वैसा कभी संन्यासी पूज्य था। क्योंकि लोग सन्यास को जीवन का परम मूल्य समझते थे। अभी अभिनेता पूज्य है, जीवन इतना झूठा हो गया है, अभिनेता से ज्यादा झूठा और क्या होगा। अभिनेता का होने का मतलब ही झूठा होना है—एक असत्य; सन्यास अगर सत्य का प्रतीक था तो अभिनेता असत्य का प्रतीक है। संन्यास अगर निरहंकार भाव का प्रतीक था तो नेता अहंकार भाव का प्रतीक है। अगर भिक्षु त्याग का प्रतीक था तो, धनपति भोग का प्रतीक है।
किसे आप पूजते है? नेता से भी ज्यादा कीमत अभिनेता की बढ़ती जा रही है, यह किस बात की खबर है? आपके भीतर झूठ की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है। मनोरंजन की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही है। सत्य की कम होती जा रही है।
और ध्यान रहे,मनोरंजन की प्रतिष्ठा तभी बढ़ती है, जब लोग बहुत दुःखी होते है, क्योंकि दुःखी आदमी ही मनोरंजन खोजता है। सुखी आदमी मनोरंजन नहीं खोजता। अगर आप प्रसन्नचित है। आनंदित है, तो आप फिल्म में जाकर नहीं बैठेंगे। क्योंकि तीन घंटा व्यर्थ की मूढ़ता हो जायेगी। समय खराब होगा; मस्तिष्क खराब होगा;तीन घंटे में आंखें खराब होंगी। स्वास्थ्य खराब होगा। और मिलेगा कुछ भी नहीं।
लेकिन दुःखी आदमी भागता है दुःखी आदमी मनोरंजन खोजता है। तो जितना मनोरंजन की तलाश बढ़ती है। उससे पता चलता है कि आदमी ज्यादा दुःखी होता जा रहा है। सुखी आदमी एक झाड़ के नीचे बैठकर भी आनंदित हो सकता है, आपने घर में भी बैठकर आनंदित है; अपने बच्चों के साथ खेलकर भी आनंदित है; अपनी पत्नी के पास चुपचाप बैठकर भी आनंदित है। कहीं जाने की जरूरत नहीं है। कहीं जाने का मतलब यह है कि जहां आप है, वहां दुःख है—वहां से बचना चाहते है।
अभिनेता असत्य है, लेकिन उसकी कीमत बढ़ती जाती है। नेता मनुष्य में निम्नतम का प्रतीक है। राजनीति मनुष्य के भीतर जो निम्नतम वृत्तियां है, उनका खेल है। लेकिन वह आदृत है। झूठ हमारा आदर्श होता चला जा रहा है।"
No comments