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    झूठा ब्रह्मज्ञान-ओशो

    jhootha brahmagyaan-osho

     झूठा ब्रह्मज्ञान-ओशो

                 मैं जब छोटा था तो मेरे गांव में एक बहुत बड़े विद्धवान पंडित रहते थे। वह मेरे पिता के मित्र थे। मैं अपने पिता के उलटे सीधे प्रश्‍न पूछ कर सर खाता रहता था। पर मेरे पिता ईमानदार आदमी थे। जब वह किसी प्रश्‍न का उत्तर न दे पाते तो कह देते मुझे मालूम नहीं है। आप मेरे मित्र इन पंडित से कोई भी प्रश्न पूछ सकते है। यह ज्ञानी ही नहीं बह्म ज्ञानी भी है।
                   मेरे पिता की इस ईमानदारी के कारण उनके प्रति अपार श्रद्धा है। मैं पंडित जी के पास गया। उन पंडितजी के प्रति मेरे मन कोई श्रद्धा कभी पैदा नहीं हुई। क्‍योंकि मुझे दिखता ही नहीं था कि जो वह है उसमें जरा भी सच्‍चाई है। उनके घर जाकर बैठ कर मैं उनका निरीक्षण भी किया करता था। वह जो कहते थे उससे उनके जीवन में कोई ताल मेल भी है या सब उपरी बातें है।
                   लेकिन वह करते थे बहुत ब्रह्म ज्ञान की बातें। ब्रह्मा सूत्र पर भाष्‍य करते थे। और मैं जब उनसे ज्‍यादा विवाद करता तो वह कहते, ठहरो; जब तुम बड़े हो जाओगे, उम्र पाओगे, तब यह बात समझ में आएगी। मैंने कहा: आप उम्र की एक तारीख तय कर दें। अगर आप जीवित रहे तो मैं निवेदन करूंगा उस दिन आकर। मुझे टालने के लिए उन्‍होंने कह दिया होगा—कम से कम इक्कीस साल के हो जाओ।
                   जब मैं इक्‍कीस साल का हो गया। मैं पहुंचा उनके पास। मैंने कहा, कुछ भी मुझे अनुभव नहीं हो रहा जो आप बताते है। इक्‍कीस साल का हो गया। अब क्‍या इरादा है? अब कहिएगा बयालीस साल के हो जाओ
                   बयालीस साल का जब हो जाऊँगा तब कहना चौरासी साल के हो जाओ। बात को टालो मत। तुम्‍हें हुआ हो ता कहो कि हुआ है;नहीं हुआ हो तो कहो नहीं हुआ। उस दिन न जाने वह कैसी भाव दशा में थे। कोई और भक्‍त उनका था भी नहीं। नहीं तो उन के भक्‍त उन्‍हें हमेशा घेरे बैठे रहते थे। भक्तों के सामने और भी कठिन हो जाता। उस दिन उन्‍होंने आंखे बंद कर ली। उनकी आंखों में दो आंसू गिर पड़े। उस दिन मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा पैदा हुई।
                 उन्‍होंने कहा मुझे क्षमा करो, मैं झूठ ही बोल रहा था। मुझे भी कहां हुआ है। टालने की ही बात थी। उस दिन भी तुम छोटे थे लेकिन तुम पहचान गए थे। क्‍योंकि मैं तुम्‍हारी आंखों से देख रहा था। तुम्‍हारे मन में श्रद्धा पैदा नहीं हुई थी। तुम भी समझ गए थे। मैं टाल रहा हूं, कि बड़े हो जाओ। मुझे भी पता नहीं है। उम्र से इसका क्‍या संबंध। सिर्फ झंझट मिटाने को मैंने कहा था। मैंने कहा आज मेरे मन में आपके प्रति श्रद्धा भाव पैदा हुआ। अब तक मैं आपको निपट बेईमान समझता था।

    –ओशो 

    स्वीर्णिम बचपन

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