चरित्र है अनुकरण, न बोध है, न बुद्धि है - ओशो
चरित्र है अनुकरण, न बोध है, न बुद्धि है - ओशो
मुल्ला नसरुद्दीन गया था ईद की नमाज पढ़ने ईदगाह। जब नमाज करने झुका तो उसके कुर्ते का एक छोर पाजामे में अटका रह गया पीछे। उसके पीछे के आदमी ने देखा, शोभा योग्य नहीं था, तो उसने झटका देकर कमीज को पाजामे से छुटकारा दिला दिया। वह जो पाजामे में अटक गया था छोर, उसको मुक्त कर दिया। मुल्ला नसरुद्दीन ने सोचा, होगा जरूर इसमें कोई राज! नहीं तो क्यों पीछेवाला आदमी झटका देगा! होगा इसमें कोई रिवाज! सो उसने आगेवाले आदमी के कमीज को पकड़कर झटका दिया। आगेवाले आदमी ने भी सोचा कि शायद नमाज का यह हिस्सा है, सो उसने आगेवाले आदमी की कमीज को पकड़कर झटका दिया। आगेवाला आदमी चौंका, उसने कहा कि क्यों मेरी कमीज को झटका दे रहे हो? उसने कहा कि भाई, मुझसे न पूछो, पीछेवाले से पूछो। पीछेवाले से पूछा; उसने कहा, मुझसे न पूछो, यह मुल्ला नसरुद्दीन जो मेरे पीछे बैठा है! मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा मुझे तो बीच में डालो ही मत! मेरे पीछे जो बैठा है इसी कमबख्त ने मेरी कमीज को झटका दिया। फिर यह सोचकर कि नमाज तो व्यवस्था से करनी चाहिए, मैंने भी झटका दिया। मेरा इसमें कोई हाथ नहीं।और सदियों—सदियों से ऐसा तुम कर रहे हो। इस करने का नाम चरित्र है। चरित्र है. अनुकरण। न dबोध है, न बुद्धि है. न सोचा है, न समझा है, न ध्याया है; और कर रहे हैं तो तुम भी कर रहे हो। किसी एक घर में पैदा हुए हो, वहा एक चरित्र की व्यवस्था थी तो तुम भी पूरा कर रहे हो। नहीं कर पाते हो तो अपराध अनुभव होता है और करते हो तो जीवन में कोई फूल नहीं खिलते।
चरित्र की यह दुविधा है—और यही उसकी पहचान भी। पूरा करो, तो जीवन उदास—उदास। न पूरा करो, तो ग्लानि, आत्मग्लानि। हर हाल में मुसीबत! पूरा करो तो मुसीबत। तुम्हारे संतों को देखो, महात्माओं को देखो! उदास। न मुस्कुराहट है जीवन में, न हंसी की फुलझड़ियां हैं, न आनंद का उत्सव है, न दीये जलते हैं, न रंग है, न गुलाल है, न होली, न दीवाली। मरुस्थल की तरह रूखे—सूखे लोग, उनको देखकर किसी को भी विरक्ति पैदा हो जीवन से, उनको देखकर जीवन व्यर्थ मालूम पड़ने लगे इसमें कुछ आश्चर्य नहीं। और यही उनका उपदेश और उनका जीवन और उनके उपदेश का प्रमाण कि जीवन व्यर्थ है। और मैं तुमसे कहता हूं : जीवन व्यर्थ नहीं है। क्योंकि जीवन में ही छिपा है सत्य और जीवन में ही छिपा है मोक्ष और जीवन में ही छिपा है परमात्मा। जीवन में छिपा है सारा साम्राज्य शाश्वत का, सनातन का। एस धम्मो सनंतनो। यही जीवन तो सनातन धर्म। और यह जीवन कितने रंगों में, कितने रूपों में प्रगट हो रहा है।
मगर अगर तुम किसी की बात मानकर चलते रहे, मानकर ही चलते रहे, तो तुम्हें कभी इस जीवन से संबंध न जुड़ पाएगा, तुम टूटे—टूटे रह जाओगे, तुम उदास हो जाओगे। अनुकरण का अर्थ है : थोथा हो जाना, नकली हो जाना; झूठा सिक्का, पाखंड। चरित्र तो पाखंड होता है। इसीलिए मैं कहता हूं : संन्यासी का कोई झूठा चरित्र नहीं होता। शील तो होता है, लेकिन चरित्र नहीं होता। चरित्र है बाह्य व्यवस्था। इसलिए हिन्दू का चरित्र अलग होता है, मुसलमान का अलग होता है, जैन का अलग होता है, बौद्ध का अलग होता है, सिख का अलग होता है, पारसी का अलग होता है। लेकिन शील तो अलग—अलग नहीं होते। बुद्ध का भी वही, कृष्ण का भी वही, महावीर का भी वही, लाओत्सु का भी वही, जरथुस्त्र का भी वही। शील तो अलग—अलग नहीं हो सकते। लेकिन आचरण तो अनंत प्रकार के हो सकते हैं।
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