भक्ति के शास्त्र का यह सारसूत्र है कि परमात्मा पुरुष है। वह आएगा। हम सिर्फ द्वार खोलकर प्रतीक्षा करें - ओशो
भक्ति के शास्त्र का यह सारसूत्र है कि परमात्मा पुरुष है, वह आएगा, हम सिर्फ द्वार खोलकर प्रतीक्षा करें - ओशो
मीरा के जीवन में यह कथा है कि मीरा मथुरा गयी, वृंदावन गयी। कृष्ण के प्रेम में दीवानी थी। सो जहां कृष्ण के चरण पड़े थे, जहां कृष्ण की बांसुरी बजी थी, जिन बंसीवटों में, जिस यमुना—तट पर, वह सब उसके लिए तीर्थ था, महातीर्थ था। उन—उन जगहों पर जाना चाहती थी, वहा की मिट्टी भी पवित्र हो गयी थी। वहा की मिट्टी सोना थी उसके लिए। लेकिन वृंदावन में एक मंदिर था कृष्ण का, बड़ा मंदिर, जिसका पुजारी स्त्रियों को नहीं देखता था।यह पागलपन कुछ स्वामी नारायण संप्रदाय में ही नहीं है! यह पागलपन बड़ा पुराना है। स्वामी नारायण संप्रदाय के जो महंत हैं, प्रमुखजी महाराज, वे स्त्री को नहीं देखते। हवाई जहाज में भी यात्रा करते हैं तो उनकी सीट के चारों तरफ परदा बांध दिया जाता है—बुर्के के भीतर। वे अकेले ही आदमी हैं जमीन पर, जो बुर्के में चलते हैं। क्या मजा है! हाथी पर जुलूस निकलता है, मगर छाता ऐसा उनके ऊपर लगाया जाता है कि उनकी आंखें छाते की छाया में रहें, कोई स्त्री दिखाई न पड जाए। स्त्री से ऐसा भय है, ऐसी घबड़ाहट।
ऐसा ही वह पुजारी रहा होगा। या यही प्रमुखजी महाराज पिछले जन्म में रहे हों, क्योंकि ऐसे लोग तो भटकते रहते हैं। ऐसे लोगों की मुक्ति का —तो कोई उपाय है नहीं। ये तो यहीं—यहीं चक्कर मारते हैं। ये जाएंगे भी कहां! जो स्त्री से बचेगा, स्त्री की कोख से फिर पैदा होगा, क्योंकि उसके चौबीस घंटे स्त्री ही खोपड़ी में समायी रहेगी। इधर मरा नहीं कि उसने स्त्री खोजी नहीं, कि गया स्त्री के गर्भ में, फिर गिरा गर्त में!
मीरा जब उस मंदिर पर पहुंची तो मीरा के आने की खबर तो पहुंच गयी थी, उसके गीतों की, उसकी वीणा की लहर तो पहुंच गयी थी। पुजारी सावहगन था। तीस साल से उस मंदिर में कोई स्त्री प्रवेश नहीं कर सकी थी। उसने द्वार पर पहरेदार लगा रखे थे कि देखो, मीरा को भीतर मत घुसने देना। मगर मीरा जब आयी और द्वार पर नाचने लगी तो पहरेदार उसके नाच में खो गये। कोन नहीं खो जाएगा? मीरा नाचे! ‘पद घुंघरू बांध मीरा नाची रे!’ कोन मीरा के नृत्य में न खो जाएगा! ‘मैं तो प्रेम दीवानी!’ वह किसको दीवाना न कर देगी! वह स्वयं तो दीवानी थी ही, लेकिन उसके आसपास भी दीवानेपन का एक माहौल चलता था। वह खुद तो मस्त थी, मस्ती लुटाती भी थी। वे भी झूमने लगे। पहरेदार भी झूमने लगे। भूल ही गये कि इसको रोकना है। पहले तो वह वहीं गीत गाती रही द्वार पर मस्त होकर, तो अभी सवाल ही न उठा था रोकने का। और जब वे बिलकुल डूब गये, मस्त हो गये और डोलने लगे, तो मीरा नाचती हुई मंदिर में प्रवेश कर गयी। रोकें—रोकें कि वह तो भीतर थी।
मीरा तो बिजली की चमक थी। कहां पकड़ पाओगे? जब तक उन्हें होश आया तब तक बात ही खतम हो चुकी थी, वह तो भीतर पहुंच गयी थी। और पुजारी प्रार्थना कर रहा था, आरती उतार रहा था। उसने स्त्री को देखा। उसके हाथ से आरती छूटकर गिर पडी। यह तीस साल की पूजा और तीस साल की आरती! और कृष्ण के सामने होते हुए मीरा दिखाई पड़ गयी और कृष्ण दिखाई क्या खाक पड़े होंगे इसको तीस साल में! यह नाहक ही मेहनत कर रहा था, नाहक कवायद कर रहा था। थाली गिर गयी, थाल गिर गया। और क्रोधित हो उठा। और कहा कि ‘ए स्त्री, क्या तुझे द्वारपालों ने नहीं रोका? क्या तुझे मालूम नहीं है? सारी दुनिया जानती है, वृंदावन का बच्चा—बच्चा जानता है कि इस मंदिर में स्त्री का प्रवेश निषिद्ध है। द्वार पर बड़े—बड़े अक्षरों में लिखा है कि स्त्री—प्रवेश निषिद्ध है। तूने प्रवेश कैसे किया? मैं स्त्री को नहीं देखता हूं। तूने मेरी तीस साल की तपश्चर्या नष्ट कर दी।’
मीरा ने चुपचाप सुना और कहा कि मैं तो सोचती थी कि तुम कृष्ण के भक्त हो, लेकिन मैं गलती में थी। क्योंकि भक्त तो मानता है एक ही पुरुष है—वह परमात्मा, वह कृष्ण। बाकी तो हम सब गोपियां हैं। तो तुम सोचते हो दुनिया में दो पुरुष हैं—एक कृष्ण और एक तुम? और क्या खाक तुम पुरुष हो। कृष्ण तो स्त्रियों से नहीं डरे। स्त्रियां नाचती रहीं उनके चारों तरफ। राधा की कमर में हाथ डालकर वे बांसुरी बजाते रहे। उनके तुम भक्त हो, जरा मूर्ति तो देखो! वहां भी राधा खडी थी मूर्ति में कृष्ण के बगल में ही। बांसुरी बज रही है, राधा नाच रही है। कृष्ण के तुम भक्त हो और स्त्रियों से ऐसा भय! यह क्या खाक भक्ति हुई? चलो, अच्छा हुआ मैं आ गयी। यह तो पता चल गया’ कि दुनिया में दो पुरुष हैं—एक परमात्मा और एक तुम।
बड़ी चोट पहुंची पुजारी को। गिर पड़ा पैरों पर। माफी मांगी कि मुझे क्षमा कर दो। यह तो मुझे खयाल ही न रहा कि पुरुष तो एक ही है।
भक्ति के शास्त्र का यह सारसूत्र है कि परमात्मा पुरुष है। वह आएगा। हम सिर्फ द्वार खोलकर प्रतीक्षा करें। वह मेहमान होगा। हम मेजबान बनें। हम आतिथ्य के लिए तैयार हो जाएं। अतिथि जरूर आएगा। कभी ऐसा नहीं हुआ कि न आया हो। जब भी किसी का हृदय आतिथ्य के लिए तैयार हुआ है, वह जरूर आया है।
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