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    भ्रष्टाचार - ओशो

    भ्रष्टाचार - ओशो

     भ्रष्टाचार - ओशो

                रवींद्रनाथ ने बड़ी मीठी कथा लिखी है अपने परिवार की। बड़ा परिवार था उनका, सौ लोग परिवार में थे। बहुत दूध खरीदा जाता था। तो दूध में पानी मिला कर आ जाता था। तो रवींद्रनाथ ने कहा कि एक इंस्पेक्टर रख दिया जाए, जो जांच-पड़ताल करे। पिता हंसे और उन्होंने कहा : ठीक है, इंस्पेक्टर रख दो। एक इंस्पेक्टर रख दिया गया, जिसका काम ही यह था कि दूध की जांच-पड़ताल करे कि पानी न मिलाया जा सके। उस दिन से दूध में पानी और थोड़ा ज्यादा आने लगा। रवीन्द्रनाथ तो बहुत हैरान हुए। मगर गणित तो ऐसे चलता है। रवींद्रनाथ ने कहा : तो एक और इंस्पेक्टर रखो इंस्पेक्टर के ऊपर, कि जो उसकी नजर रखे कि यह कोई बेईमानी न कर सके। उस दिन तो गजब हो गया, पानी तो आया ही आया, एक मछली भी दूध में आ गयी! क्योंकि इंस्पेक्टर का हिस्सा जुड़ता गया।

                बाप ने कहा : तू पागल है! विदा कर इन इंस्पेक्टरों को। यह और एक मुफ्त का खर्च सिर पर बंधा। दो इंस्पेकटरों को तनखाह दो और इन दोनों के हिस्से बंध गये हैं। जैसा चल रहा था ठीक था। इतना पानी नहीं था, कम-से -कम मछलियां तो नहीं आती थीं।

                ऐसी इस देश की दशा है। यहां तुम भ्रष्टाचार किससे रुकवाओगे? यह तंत्र कौन बदलेगा? जो बदलेगा उसको ही इस तंत्र का हिस्सा होना पड़ेगा। इस तंत्र में जीना है तो इस तंत्र के बाहर खड़ा नहीं हो सकता वह। जिन राजनेताओं से तुम आशा करते हो कि वे इस तंत्र को बदलेंगे? उसको चुनाव लड़ने के लिए पैसे चाहिए। पैसे कोई ऐसे नहीं देता।
    हंसा तो मोती चुगैं

    -ओशो

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