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    नमस्कार का अर्थ - ओशो

    नमस्कार का अर्थ - ओशो

    नमस्कार का अर्थ - ओशो

          इस देश ने नमस्कार का एक अद्भुत ढंग निकाला। दुनिया में वैसा कहीं भी नहीं है।.. इस देश ने कुछ दान दिया है मनुष्य की चेतना को, अपूर्व!… यह अकेला देश है जहां जब दो व्यक्ति नमस्कार करते हैं तो दो काम करते हैं; एक तो दोनों हाथ जोड़ते हैं। दो हाथ जोड़ने का मतलब होता है दो नहीं हैं, एक। दो हाथ दुई के प्रतीक हैं, द्वैत के प्रतीक हैं। उन दोनों को जोड़ लेते हैं कि दो नहीं हैं?’ एक ही है। उस एक का ही स्मरण दिलाने के लिए दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते हैं। और, दोनों हाथ जोड़कर जो भी शब्द उपयोग करते हैं, वह परमात्मा का स्मरण होता है। कहते हैं : राम—राम, जयराम, या कुछ भी। लेकिन वह परमात्मा का नाम होता है। दो को जोड़ा कि परमात्मा का नाम उठा। दुई गयी कि परमात्मा आया। दो हाथ जुड़े और एक हुए कि फिर बचा क्या; हे राम!

                दुनिया में नमस्कार के बहुत ढंग हैं। कहीं हाथ मिलाकर लोग नमस्कार करते हैं, कहीं नाक से नाक रगड़कर नमस्कार करते हैं। और भी पहुंचे हुए लोग हैं—जीभ से जीभ मिलाकर नमस्कार करते हैं। कहीं कहते हैं : शुभ संध्या या शुभ प्रभात—गुड—मार्निंग या गुड—ईवनिंग—लेकिन यह देश अकेला है जो दूसरे को छूता ही नहीं, सिर्फ अपने दोनों हाथों को जोड देता है। ऐसे एक की उद्घोषणा कर देता है और फिर राम का स्मरण करता है। और जय भी बोलता है तो राम की। क्या सुबह की बात करनी! क्या सांझ की बात करनी! सुबहें आती हैं, साझे आती हैं, सुबहें जाती हैं, साझे जाती हैं, जो सदा टिका है वह राम है। उसी में सुबह होती है, उसी में सांझ होती है, उसकी बात कर ली तो सबकी बात कर ली। उस एक को मांग लिया तो सब मांग लिया।

                एक सम्राट विजय—यात्रा को निकला। सारी दुनिया को विजय करके जब लौटता था, तो उसकी सौ पत्नियां थीं, उसने खबर भिजवायी कि जिसको जो मांग हो, उसके लिए मैं वही ले आऊं। निन्यान्नबे पत्नियों ने अपनी—अपनी महा भेजी। किसी ने कहा, कोहिनूर ले आना और किसी ने कुछ, किसी ने कुछ। एक पत्नी ने सिर्फ इतनी खबर भेजी कि तुम जल्दी घर लौट आओ, बस! और क्या चाहिए तुम आ गये तो सब आ गया! सम्राट सभी के लिए लाया—जों जिसने मांगा था, जिसने कोहिनूर मांगे थे, उसके लिए कोहिनूर, हीरे—जवाहरात, सोने—चांदी के जेवर—जो जिसने मांगा था, सबके लिए ले आया। सबको दे दिये। लेकिन गया उस पत्नी के पास जिसने सिर्फ उसे ही मांगा था।

                वे निन्यान्नबे रानियां हैरान हुईं और उन्होंने कहा कि आप आये इतने लंबे दिनों बाद, क्या कारण है कि आप उस एक पत्नी को सौ में से चुन रहे हैं? वह सबसे सुंदर भी नहीं है। वह सबसे युवा भी नहीं है। सम्राट ने कहा, उसका कारण है कि उसने भर मुझे मांगा। तुमने कुछ और मांगा। तुम्हारा मेरा नाता वस्तुओं का नाता। उसका मेरा नाता हृदय का नाता। तुमने जो मांगा, तुम्हें मिल गया। उसने जो मांगा, मुझे उसे देने दो।

                क्या सुबह की जय बोलें? क्या सांझ की जय बोलें? जय बोलनी तो उस एक की बोलनी। मगर वह एक पूजा करनेवाले में विराजमान है और जिसकी तुम पूजा करते हो उसमें विराजमान है।

    -ओशो

    ‘लगन महूरत झूठ सब’

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