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    शून्य के मंदिर में ही परमात्मा से मिलन है - ओशो

    शून्य के मंदिर में ही परमात्मा से मिलन है - ओशो

    शून्य के मंदिर में ही परमात्मा से मिलन है - ओशो 

          भारत के मनीषियों ने कहा है, नायं आत्मा प्रवचनेन लभ्यो, न मेधया, न बहुधा श्रुतेन। यह आत्मा न तो प्रवचन से मिल सकती है, न बड़ी मेधा से, बुद्धि से, न बहुत सुनने से। न मेधया, न बहुधा श्रुतेन। बहुत सुनो, तो भी नहीं मिल सकती, बहुत समझो, तो भी नहीं मिल सकती, बहुत पढ़ो, तो भी नहीं मिल सकती, क्योंकि दुई तो बनी रहेगी। मिटो, तो ही मिलती है। न हो जाओ, तो ही मिलती है। शब्द खो जाएं, शून्य ही रह जाए। उस शून्य के मंदिर में ही परमात्मा से मिलन है।
    गीता दर्शन

    -ओशो

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