ढंग जीने, और होने का - ओशो
ढंग जीने, और होने का - ओशो
सदगुरु जीवित होता है, उसकी तो लोग फिक्र नहीं करते। जब शास्त्र बन जाता है सदगुरु का, जब डायरी लिखी जा चुकी होती है, तब विचार करना शुरू करते हैं।
तुम भी कृष्ण के समय में रहे होओगे। अन्यथा होने का उपाय नहीं है, क्योंकि जो भी है, वह सदा से है। तब तुम चूक गए। अब तुम गीता पढ़ रहे हो। तुम बुद्ध के समय में रहे होओगे, तब तुम चूक गए। अब तुम धम्मपद पढ़ रहे हो। तुमने मोहम्मद की वाणी से भी कुरान सुना होगा, लेकिन वह तुम्हारे कंठ न उतरा। अब तुम कुरान कंठस्थ कर रहे हो। जान दाव पर लगाए देते हो।
क्या मामला है? तुम अभी क्यों नहीं जी पाते? वही एकमात्र ढंग है जीने और होने का और समाधान का।
गीता दर्शन,
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