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    उदासी - एक ध्यान - ओशो


    उदासी - एक ध्यान -ओशो


    उदासी एक बहुत समृद्ध अनुभव बन सकता है । तुम्हें उस पर काम करना होगा। तुम्हारी उदासी से भागना आसान है। और सारे संबंध सामान्यतया पलायन होते हैं। व्यक्ति उदासी से बचता रहता है लेकिन वह हमेशा गहरे बनी रहती है, एक अंतर्धारा सी बहती रहती है। संबंध में वह कई बार उभरती है। फिर लोग एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं लेकिन असली बात वह नहीं होती। असली बात है तुम्हारा एकाकीपन, तुम्हारी उदासी। चूंकि तुमने उसका इलाज नहीं किया है, वह बार-बार उभरेगी।

    हर आदमी अकेला जन्मता है–– दुनिया में जन्मता है लेकिन अकेला; मां-बाप के द्वारा आता है लेकिन अकेला। और हर आदमी अकेला मरता है, फिर से दुनिया से बाहर अकेला ही जाता है। और इन दो एकाकीपनों के बीच हम खुद को धोखा दिए चले जाते हैं, खुद को बेवकूफ बनाते हैं। बेहतर होगा कि हिम्मत करके इस एकाकीपन में प्रवेश करें। शुरुआत में वह कितना ही मुश्किल और दूभर क्यों न लगे, वह बेहद कीमती है। एक बार तुम उसमें रम जाते हो, एक बार तुम उसका आनंद लेना शुरु करते हो, एक बार तुम उसे उदासी की तरह नहीं बल्कि मौन की तरह महसूस करते हो, एक बार तुम समझ गए कि भागने का कोई रास्ता नहीं है तो तुम निश्चिन्त हो जाते हो।

    इसके बारे में कुछ नहीं किया जा सकता, तो फिर इसका मज़ा क्यों न लिया जाए? क्यों न इसमें गहरे उतरकर इसका स्वाद लिया जाए और देखा जाए कि वह क्या है? व्यर्थ ही डरना क्यों? वह तो रहेगी और यह अस्तित्वगत तथ्य है, आकस्मिक नहीं। तो उससे समझौता क्यों न किया जाए? उसमें प्रवेश करके उसे क्यों न देखा जाए कि वह क्या है?

    जब भी उदासी आए, तुम मौन बैठो और उदासी को आने दो, उससे दूर मत भागो। खुद को जितना उदास कर सको उतना करो। उससे बचो मत। इस बात को ख्याल रखना है। रोओ, आंसू बहाओ, उसका पूरा स्वाद लो। इतना रोओ जैसे मर गए हो। जमीन पर गिर जाओ, लोटपोट होओ, और उसे अपने आप विदा होने दो। उसे जबरदस्ती मत निकालो, वह जाएगी क्योंकि कोई भी आदमी स्थायी रूप से एक ही भावदशा में नहीं रह सकता।
    जब यह चला जाएगा तो तुम निर्भार महसूस करोगे, पूरी तरह निर्भार, मानो समूचा गुरुत्वाकर्षण गायब हो गया है और तुम उड़ सकते हो, कोई वजन नहीं है। यही क्षण है अपने भीतर प्रविष्ट होने का। पहले उदासी को उभारो। सामन्यतया उसे उभरने नहीं दिया जाता, ऐसे तरीके और उपाय खोजे जाते हैं ताकि तुम कहीं और देखने लगो – रेस्तरां चले जाओ या स्विमिंग पूल जाओ, दोस्तों से मिलो, किताब पढ़ो या सिनेमा देखने जाओ, गिटार बजाओ। कुछ करो ताकि तुम व्यस्त रहो और तुम अपना ध्यान कहीं और ले जा सको।

    इसे ख्याल रखना जरूरी है ––जब तुम उदास अनुभव करते हो तो इस अवसर को मत खोओ; दरवाजा बंद करो, बैठ जाओ, और जितना चाहो उदास अनुभव करो मानो पूरी दुनिया एक नर्क हो। उसमें गहरे उतरो, उसमें डूबो। हर उदास विचार को अपने भीतर गहरे उतरने दो, हर उदास भाव को खुद को आंदोलित करने दो। और रोओ, आंसू बहाओ, और बकवास करो -- जोर से, इसमें चिंता की कोई बात नहीं है।तो पहले उदासी को कुछ दिनों तक जीयो, और जैसे ही उदासी का वह संवेग विदा होता है, तुम बहुत शांत, बहुत नीरव अनुभव करोगे जैसे तूफान के बाद अनुभव करते हो। उस क्षण मौन होकर बैठ जाओ और अपने आप जो शांति आ रही है उसका आनंद लो। वह तुमने नहीं लायी है , तुम तो उदासी ला रहे थे। जब उदासी चली जाती है तब उसके पीछे मौन शेष रहता है।
    इस मौन को सुनो। अपनी आंखें बंद करो। महसूस करो, उसकी सतह को महसूस करो, उसकी सुवास को महसूस करो। और अगर तुम आनंदित होते हो तो नाचो, गाओ।

    - ओशो 

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