अहंकार का गणित - ओशो
अहंकार का गणित
हम हर आदमी में दोष देखते हैं। क्यों? क्योंकि दोष की बड़ी-बड़ी लकीरें खिंच जाएं तो खुद के दोष छोटे दिखाई पड़ने लगते हैं। दूसरे का दोष देखना हो तो हम उसे अनंत गुना बडा करके देखते हैं।और अगर दूसरे का गुण देखना ही पड़े मजबूरी में,कोई उपाय ही न हो, तो हम उसे बहुत छोटा करके देखते हैं। जितना छोटा कर सकें उतना छोटा करके देखते हैं।
दूसरे का दोष देखना हो तो राई का पर्वत बनाते हैं। और दूसरे का गुण देखना हो तो पर्वत को राई बनाते हैं।यह हमारे अहंकार का ही हिसाब है। इसके भीतर हमारी अस्मिता बैठी है। वह कह रहीं है..मुझसे और अच्छा कोई कैसे हो सकता है!
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