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    बुद्ध आज भी सहायक - ओशो


    बुद्ध आज भी सहायक - ओशो

          यह वहुत विरोधाभासी है और समझना कठिन है क्योंकि हम वह कोई चीज नही समझ सकते जो समय के बाहर होती है। हमारी समझ समय के भीतर होती है। हमारी सारी समझ स्थान से जुडी होती है।जब कोई कहता है कि बुद्ध समयातीत और स्थानातीत हैं तो यह हमारी समझ में नही आती।
          जब तुम कहते हो कि बुद्ध समयातीत हैं इसका अर्थ होता है कि बे कहीं विशेष स्थान में अस्तित्व नही रखते ।और कैसे कोई हो सकता है विना किसी विशेष स्थान में अस्तित्व रखे हुए? वे विद्यमान रहते हैं वे मात्र अस्तित्व रखते हैं ।तुम दिखा नही सकते कि कहाँ तुम नही बता सकते कि वे कहाँ होते हैं ।इस अर्थ में वे कहीं नही हैं और एक दुसरे अर्थ में वे सभी जगह सर्वत्र हैं।
    मन समय में रहता है अतः उसके लिए समय के पार किसी चीज को समझना वहुत कठिन है। लेकिन जो बुद्ध की विधिओ के पीछे चलता है और गुरु हो जाता है तुरन्त उसका उनसे संपर्क स्थापित हो जाता है।
          बुद्ध अब भी उन लोगो को मार्ग दिखाते हैं जो उनके मार्ग पर चलते हैं। वे मार्ग दिखाते रहे हैं। प्रत्येक गुरु मार्ग निर्देशन करता रहा है। एक बार तुम गुरु के निकट हो लेते हो --शिक्षक के निकट नही --तो तुम श्रधा रख सकते हो। चाहे इस जीवन में तुम सम्बोधि न भी पाओ। सूक्ष्म मार्गदर्शन सदा निरन्तर रूप से रहेगा तुम्हारे लिए--चाहे तुम जानो भी नही कि निर्देशित किये जा रहे हो।
          गुर्जिअफ़ से सम्बंधित वहुत लोग मेरे पास आ गए हैं। उन्हें आना ही है क्योकि गुर्जिअफ़ उन्हें मेरी ओर फेकता रहता है। कोई और है ही नही जिसकी तरफ गुर्जिअफ़ उन्हें धकेल सकता। और यह खेदजनक है लेकिन ऐसा है कि अब गुर्जिअफ़ की पद्धति में कोई गुरु नही है अतः वह संपर्क नही बना सकता।गुर्जिअफ़ के वहुत लोग कभी न कभी आयेंगे ही! यधपि बे सचेतन रूप से नही आते क्योंकि वे नही समझ सकते क्या घट रहा है। वे सोचते हैं यह तो मात्र संयोगिक है।

     - ओशो

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