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    फेसबुक - मायाजगत की माया

                         पहले लोग रातो को जागते थे , तब मामला प्यार का होता था  , रातो को नींद नहीं आती थी , अब भी लोग रातो को जागते हीं , पर मामला कुछ अलग है , अगर आप रात 3 बजे फेसबुक पर चले जाएँ तो वहाँ आप को ऐसे लोगो की भरमार मिलेगी , इन बेचारो को रात 3 बजे भी नींद नहीं आती है, रात 3 बजे भी इनकी पोस्ट्स धड़ाधड आ रही होती हैं. मानो कोई पागलपन सवार हो , विचारों की दिमागी खुजली इन्हें रातो को सोने ही नहीं देती , दुनिया बदल डालने को बेक़रार दिखते हैं,  उन्हें ये भ्रम हो गया होता है की फेसबुक से वो दुनिया बदल डालेंगे , हमेशा एक  माया जगत में खोये रहते हैं , अगर कोई पोस्ट पब्लिश कर दी तो हर 15 मिनट में भाग भाग कर फेसबुक पर आएंगे की कहीं किसी ने कुछ कहा तो नहीं  , मोर्चा संभालना पड़ता है , कितने Likes आए हैं , बड़ी अहंकार को तुप्ती मिलती है की चलो कोई तो समर्थन कर रहा है जो मै सोचता हूँ .  रात दिन की किसको फिकर है , शरीर बर्बाद होता है तो होता रहे , रात को आंख खुली तो डर सता रहा है की कहीं किसी ने कुछ गलत तो नहीं लिख दिया कमेंट्स में , पोस्ट गन्दी तो नहीं हो गयी , लोग क्या कहेंगे , छवि खराब हो जायगी , तुरंत ब्लाक करना पड़ेगा वर्ना बड़ी बेइज्जती हो जायेगी .बेचारे सुबह से रात तक इसी में उलझे रहते हैं ,दिमाग उसी में लगा रहता है मानो जीवन में और कुछ है ही नहीं .
                    एक तो जगत वैसे ही माया है , उस पर फेसबुक इस माया जगत की भी माया है , जब इस माया जगत में फंसा आदमी ही इतना जादा दुखी है तो  दुगनी माया में फंसे आदमी का क्या हाल होगा ? माया भी ऐसी की छुटाए नहीं छूटती , पहली माया से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं , और दूसरी माया में अपने को फसाए हैं . ये जब समझ आ जाये की माया हमेशा दुःख की और ले जाती है ,प्रारंभ में वो सुख देती हुई दिखाई देती है , लेकिन अंत में वो दुःख ही देती है .  तो कुछ बुद्धिजीवी उससे बहार भी निकल आते हैं , लेकिन अधिकंश के लिए माया की माया से निकलना मुश्किल होता है. यही माया उन्हें तर्क देती है की वो सही हैं और जो कह रहे हैं कर रहे हैं सब सही है. फिर भी समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है.

    * ओशो सौरव *

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